जब हम भारत की प्राचीन कथाओं की बात करते हैं, तो अक्सर शब्द‑संधि, त्रेता या द्वापर के बारे में सुनते हैं। लेकिन उन कहानियों के पीछे एक बड़ा ढांचा रहता है – सूतक काल। यह वह काल है जिसमें कई महाकाव्य, धर्मग्रंथ और लोककथाएँ गढ़ी गईं। तो चलिए, इस युग को थोड़ा करीब से देखते हैं, बिना किसी जटिल विद्वतापूर्ण शब्दों के।
सूतक काल को आमतौर पर तीन बड़े भागों में बाँटा जाता है: सत्रिय, त्रेतिय और द्वापर। इतिहासकारों के अनुसार, इन भागों की अवधि सैंकड़ों या हजारों साल नहीं, बल्कि दन्तकथा के रूप में दीर्घकालिक समय रेंज है।
पहला भाग सत्रिय युग है, जिसमें पृथ्वी पर मानवीय जीवन का प्रारंभिक रूप माना जाता है। यहाँ हम अक्सर वेद की उत्पत्ति को सुनते हैं। दूसरा भाग त्रेतिय युग है, जहाँ राम और सीता की कथा प्रमुख है। यह युग अक्सर अच्छे और बुरे के बीच संतुलन बताता है। तीसरा भाग द्वापर युग है, जिसमें कृष्ण, महाभारत और पांडवों की कहानी आती है। ये तीनों भाग मिलकर सूतक काल के मुख्य ढाँचे को बनाते हैं।
इन युगों के बाद एक नया चक्र शुरू होता है – कलियुग, जो अभी चल रहा है, लेकिन वह आज के लेखन से बाहर है।
सूतक काल के सबसे लोकप्रिय कहानियों में राम कथा, महाभारत और भगवद‑गीता शामिल हैं। ये कथाएँ सिर्फ धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि नैतिकता, राजनीति और सामाजिक संरचना का प्रतिबिंब हैं।
उदाहरण के लिए, राम का वनवास दिखाता है कि सच्ची कर्तव्य भावना कैसे कठिनाइयों को पार करती है। महाभारत में कौरव‑पांडव की युद्ध रणनीति आज भी प्रबंधकीय रणनीति के पढ़ाई में काम आती है। कृष्ण की गीता में कर्म और ज्ञान का संतुलन हमारे रोज़मर्रा के फैसलों में मदद करता है।
इन कहानियों को सिर्फ पढ़ने से बहुत कुछ नहीं मिलता। अगर हम इन पात्रों की सोच, उनका निर्णय‑प्रक्रिया और उनका सामाजिक संदर्भ समझें, तो हमें आधुनिक समस्याओं के समाधान में नई दृष्टि मिल सकती है। यही कारण है कि सूतक काल की कहानियाँ अनगिनत पीढ़ियों को आकर्षित करती आ रही हैं।
अंत में, अगर आप भारतीय इतिहास या संस्कृति में रूचि रखते हैं, तो सूतक काल एक बेहतरीन शुरुआती बिंदु है। यह न केवल अतीत की झलक देता है, बल्कि आज के सामाजिक, नैतिक और आध्यात्मिक प्रश्नों के जवाब भी खोजने में मदद करता है। आप चाहे छात्र हों, शोधकर्ता हों या सामान्य पाठक, इस काल का अध्ययन आपके समझ को गहरा करेगा।