7 सितंबर 2025 की रात आसमान में एक खगोलीय घटना नजर आएगी और उसके साथ WhatsApp यूनिवर्सिटी से लेकर पुश्तैनी मान्यताएँ—सब कुछ एक साथ चल पड़ेगा। सवाल वही: गर्भवती महिलाएँ क्या करें, क्या न करें? परंपरा कहती है कि ग्रहण के दौरान बहुत सतर्क रहें; विज्ञान कहता है, डरने की जरूरत नहीं, बस स्वास्थ्य और मानसिक शांति पर ध्यान दें. इस लंबी रिपोर्ट में दोनों पक्षों को समझदारी से जोड़कर एक व्यावहारिक रोडमैप दिया गया है—ताकि मां और होने वाले बच्चे, दोनों सुरक्षित और निश्चिंत रहें।
चंद्र ग्रहण 2025 के संदर्भ में कई घरों में सूतक, मंत्र-जाप, स्नान और शुद्धिकरण की चर्चा रहती है। ज्योतिषीय मान्यताओं में माना जाता है कि ग्रहण के दौरान नकारात्मक ऊर्जा सक्रिय होती है, इसीलिए गर्भवती महिलाओं के लिए अतिरिक्त एहतियात सुझाए जाते हैं। दूसरी ओर, आधुनिक चिकित्सा के पास ऐसे “हानिकारक विकिरण” का कोई प्रमाण नहीं है। यानी, आपकी प्राथमिकता साफ होनी चाहिए—सुरक्षित दिनचर्या, पौष्टिक भोजन, हाइड्रेशन, और तनाव से दूरी।
परंपराएँ, सूतक और गर्भवती महिलाओं के लिए सावधानियाँ
भारतीय परंपरा में चंद्र ग्रहण के साथ “सूतक” जुड़ा रहता है। सामान्य तौर पर चंद्र ग्रहण का सूतक 9 घंटे पहले माना जाता है। कई पंडित उपच्छाया (पेनुम्ब्रल) ग्रहण में सूतक को सख्ती से लागू नहीं करते; जबकि खंड व पूर्ण चंद्र ग्रहण में नियम कड़े माने जाते हैं। अगर आपके परिवार की अपनी परंपरा है, तो उसी के अनुसार लचीलापन रखें—यह बात खुद शास्त्राचार्य भी कहते हैं कि स्वास्थ्य सर्वोपरि है।
गर्भवती महिलाओं के लिए परंपरागत सलाह—ग्रहण की पूरी अवधि घर के अंदर रहें, सोना टालें, और तेज वस्तुओं से दूरी रखें। इससे दो फायदे बताए जाते हैं: एक, अनजाने में कट-छिलने का जोखिम कम; दो, मन लगातार सजग रहता है और समय मंत्र-जाप या ध्यान में लगता है। इस दौरान घर के पर्दे-खिड़कियाँ ढककर रखा जाना, धातु के जेवर उतार देना और फालतू आवाजाही रोकना भी कई परिवारों में किया जाता है।
खाने-पीने को लेकर परंपरागत मान्यताएँ साफ कहती हैं—बासी भोजन न लें, ताजा फल, हल्का सात्त्विक खाना और पर्याप्त पानी पर जोर दें। बहुत-सी जगहों पर ग्रहण शुरू होने से पहले खाने-पीने में तुलसी की पत्तियां या कुशा डालने की परंपरा है। माना जाता है कि इससे नकारात्मक असर से बचाव होता है। चिकित्सा की नजर से देखें तो यह प्रैक्टिस स्वच्छता और सजगता को बढ़ाती है—खासकर जब आप तैयार होकर तय समय पर हल्का, ताजा खाना रखें।
मंत्र-जाप के संदर्भ में सबसे लोकप्रिय है महामृत्युंजय मंत्र। मान्यता है कि यह शारीरिक-मानसिक सुरक्षा और दीर्घायु का संकल्प देता है। आप चाहें तो 11, 27, 51 या 108 बार जप कर सकती हैं—संख्या से ज्यादा इरादा और एकाग्रता मायने रखती है। उदाहरण के लिए—“ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥” इसके अलावा चंद्र देव के बीज मंत्र—“ॐ सोमाय नमः” या “ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्राय नमः”—का जप भी ग्रहण और सूतक में किया जाता है।
बहुत-से घरों में हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ किया जाता है। यह अभ्यास ध्यान, श्वास की लय और स्थिरता बढ़ाता है—गर्भवती महिलाओं के लिए यह मानसिक शांति की बेहतरीन साधना है। जो लोग मंत्र-जाप से कम्फर्टेबल नहीं, वे सरल ध्यान, भजन, नाम-स्मरण या गहरी सांस लेने के अभ्यास कर सकती हैं। लक्ष्य साफ है—मन को शांत और सकारात्मक रखना।
रिवाजों में स्नान-शुद्धिकरण का महत्व भी है। ग्रहण से पहले स्नान, फिर ग्रहण समाप्ति के बाद दोबारा स्नान—यह प्रक्रिया मनोवैज्ञानिक तौर पर “रीसेट” जैसा असर देती है। घर के पूजन-स्थल और मूर्तियों पर गंगाजल छिड़कना, अगर उपलब्ध न हो तो सामान्य स्वच्छ जल का प्रयोग, और फिर थोड़ी देर दीपक या अगरबत्ती—परंपरा कहती है कि इससे घर का वातावरण हल्का और साफ महसूस होता है।
कुछ परिवारों में “जल-भरा नारियल” की प्रथा है—ग्रहण से पहले गर्भवती महिला गोद में रखती है और ग्रहण के बाद उसे बहते जल में प्रवाहित किया जाता है। इसे प्रतीकात्मक “नकारात्मकता का विसर्जन” माना जाता है। अगर आपके क्षेत्र में यह संभव न हो तो आप नारियल को अगले दिन किसी जलस्रोत में प्रवाहित करने या मंदिर में दान करने का विकल्प चुन सकती हैं।
तुलसी पौधे को ग्रहण के दौरान न छूने और मंदिर न जाने की भी सलाह दी जाती है। यह श्रद्धा का विषय है—अगर परिवार ऐसा मानता है, तो ग्रहण समय घर के पूजन-स्थल में साधना कर लें। खिड़कियाँ-पर्दे ढंकना, रोशनी मध्यम रखना और अनावश्यक आवाजाही रोकना—ये सब माहौल को शांत रखते हैं, जो गर्भावस्था में उपयोगी है।
क्या करें और क्या न करें—एक झटपट सूची:
- ग्रहण के समय घर के अंदर रहें, फोन पर बिना वजह की खबरें/फॉरवर्ड्स कम देखें।
- हल्का, ताजा और सुपाच्य भोजन रखें; बासी या भारी-तैलीय खाना टालें।
- तेज और नुकीली वस्तुओं से दूरी बनाएँ; सिलाई-कढ़ाई, किचन कटिंग आदि बाद में करें।
- धातु के भारी जेवर उतारकर आरामदायक कपड़े पहनें, हवा का हल्का-सा प्रवाह बनाए रखें।
- मंत्र-जाप, ध्यान, भजन, धीमी सांस के अभ्यास करें; नींद आने लगे तो आँखें बंद कर शांत बैठें।
- दवाइयाँ समय पर लें; पानी की घूंट-घूंट लेते रहें; उलझन लगे तो तुरंत अपने डॉक्टर से बात करें।
सूतक और भोजन पर एक जरूरी बात—कई लोग गर्भवती महिलाओं से भी उपवास करवाते हैं। चिकित्सकीय मापदंड इससे सहमत नहीं। गर्भावस्था में लंबा उपवास शर्करा-स्तर, एसिडिटी, सिरदर्द और चक्कर का खतरा बढ़ा सकता है। अगर आपके यहां सूतक/उपवास का दबाव है, तो डॉक्टर की सलाह लेकर “लाइट स्नैकिंग” का रास्ता अपनाएँ—ताजे फल, दही, नारियल पानी, मूंगदाल चीला/इडली जैसा हल्का विकल्प रखें।

विज्ञान बनाम मान्यता: चिकित्सकीय सलाह, पोषण और मानसिक स्वास्थ्य
खगोलविज्ञान साफ कहता है—चंद्र ग्रहण एक पूरी तरह प्राकृतिक घटना है: पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है। इसमें ऐसे “हानिकारक किरणों” का कोई प्रमाण नहीं जिसे मानव स्वास्थ्य सीधे-सीधे प्रभावित होता दिखे। सूर्य ग्रहण में आँखों की सुरक्षा का सवाल उठता है; चंद्र ग्रहण में यह जोखिम भी नहीं। तो फिर डर क्यों? दरअसल, डर की जड़ें सांस्कृतिक स्मृति और अनिश्चितता में हैं। इसे समझते हुए संतुलित रवैया अपनाएँ—परंपराओं का सम्मान करें, पर स्वास्थ्य विज्ञान के मूल नियमों से समझौता न करें।
डॉक्टरों की प्राथमिक सलाह—नियमित भोजन, पानी, दवाइयाँ और आराम। गर्भावस्था के किसी भी तिमाही में लो ब्लड शुगर, डिहाइड्रेशन, कब्ज, हेमरॉइड, माइग्रेन जैसी समस्याएँ थोड़ा-सा असंतुलन बढ़ा सकता है। इसलिए ग्रहण जैसी “सांस्कृतिक घटना” के दिन भी रूटीन को स्थिर रखें। अगर परिवार मान्यताओं के कारण आपसे देर तक जागे रहने को कहे, तो अपने डॉक्टर से पूछकर दिन में थोड़ी झपकी ले लें, रात में ग्रहण की अवधि में सिर्फ ध्यान-मंत्र तक सीमित रहें—ताकि शरीर पर जोर न पड़े।
मानसिक स्वास्थ्य की भाषा में, ग्रहण को “माइंडफुलनेस मोमेंट” बनाइए। फोन साइलेंट पर रखें, न्यूज़/फॉरवर्ड्स का ओवरलोड न लें, कमरे की रोशनी हल्की रखें, और धीमा संगीत या मंत्र-ध्वनि चालू कर लें। 4-7-8 ब्रीदिंग जैसी सरल तकनीक—4 सेकंड सांस लें, 7 सेकंड रोके रखें, 8 सेकंड छोड़ें—पेट की मांसपेशियों को रिलैक्स करती है और मन को स्थिर करती है।
पोषण पर एक व्यावहारिक प्लान, जिसे आप अपनी जरूरत के अनुसार एडजस्ट कर सकती हैं:
- ग्रहण शुरू होने से 60–90 मिनट पहले: हल्का-सा पौष्टिक स्नैक—केला/सेब, थोड़ी भुनी मूंगफली या मखाना, साथ में गुनगुना पानी।
- ग्रहण के दौरान: हर 20–30 मिनट में पानी की कुछ घूंटें; अगर एसिडिटी की प्रवृत्ति है तो सादा नारियल पानी या छाछ की थोड़ी-सी चुस्कियाँ।
- ग्रहण के बाद: गुनगुना पानी, फिर हल्का डिनर—खिचड़ी/दलिया/इडली-सांभर या सूप, और बाद में 1–2 घंटे में नींद।
अगर आपको थायरॉयड/डायबिटीज/हाई बीपी/एनीमिया या किसी हाई-रिस्क गर्भावस्था की स्थिति है (जुड़वां बच्चे, प्लेसेंटा से जुड़ी जटिलताएँ, प्रीटर्म लेबर का जोखिम आदि), तो अपने गायनेकोलॉजिस्ट की लिखी दिनचर्या से बिल्कुल न हटें। ऐसी परिस्थितियों में “उपवास” जैसा प्रयोग भूलकर भी न करें।
घर के माहौल को ग्रहण-फ्रेंडली बनाने के आसान तरीके:
- कमरे की रोशनी मध्यम रखें, तेज गंध वाली अगरबत्ती/धूप से बचें—मतली/सिरदर्द का ट्रिगर हो सकती है।
- वेंटिलेशन रखें पर ठंडी हवा का सीधा झोंका न लगे; मौसम के हिसाब से हल्का शॉल/कंबल पास रखें।
- फर्श पर फिसलन न रहे; रात में वॉशरूम जाते वक्त नाइट-लाइट काम आएगी।
- साथी/परिवार के सदस्य अलार्म, पानी की बोतल, दवाइयाँ और हेल्पलाइन नंबर पास रखें—एहतियात हमेशा बेहतर।
परंपराओं के प्रति संतुलित रवैया अपनाना भी जरूरी है। अगर बुजुर्ग कहते हैं कि तुलसी न छुएँ, मंदिर न जाएँ, या पर्दे बंद रखें—तो इसमें कोई चिकित्सकीय नुकसान नहीं, उल्टा यह माहौल को शांत रखता है। लेकिन जहां बात स्वास्थ्य की हो—जैसे दवाइयाँ रोकना, लंबा उपवास करना, नींद पूरी तरह त्यागना—वहाँ डॉक्टर की सलाह को प्राथमिकता दें।
कई परिवार “ग्रहण-सूची” बनाकर सहज रहते हैं। आप भी बना सकती हैं:
- समय-सीमा: अपने शहर के ग्रहण के आरंभ-अंत का समय किसी विश्वसनीय पंचांग/खगोल कैलेंडर से नोट करें।
- तैयारी: ग्रहण से पहले स्नान, हल्का भोजन, कमरे की सेटिंग, पानी/दवाइयाँ/स्नैक्स पास रखें।
- आध्यात्मिक अभ्यास: जप/ध्यान के लिए 15–20 मिनट के छोटे-छोटे स्लॉट बनाएं—शरीर पर दबाव न पड़े।
- समाप्ति के बाद: स्नान, पूजन-स्थल की हल्की सफाई, गंगाजल/साफ जल का छिड़काव, और फिर हल्का भोजन व आराम।
एक आम गलतफहमी यह भी है कि ग्रहण के समय “सोना” सख्त वर्जित है। परंपरा इसे टालने को कहती है ताकि साधना में निरंतरता रहे। मगर गर्भावस्था में नींद छीनना समझदारी नहीं। अगर जरूरत महसूस हो, तो ध्यान मुद्रा में आँखें बंद कर आराम करें या छोटी झपकी लें—शर्त यही कि शरीर पर तनाव न पड़े।
अगर आप धार्मिक मंत्रों से जुड़ना चाहती हैं, पर लंबी सूचियाँ उलझाती हैं, तो यह छोटी-सी दिनचर्या काफी है:
- 5 मिनट—धीमी सांस के साथ “ॐ” का उच्चारण।
- 5–7 मिनट—महामृत्युंजय मंत्र 11 या 27 बार।
- 3–5 मिनट—“ॐ सोमाय नमः” का जप।
- अंत में 2 मिनट—शांत बैठकर कृतज्ञता भाव: “मां और शिशु के लिए स्वास्थ्य, शांति और सुरक्षा।”
ग्रहण के तात्कालिक बाद कुछ लोग भारी शुद्धिकरण करते हैं—तेज डिटर्जेंट, धूप, घंटों की सफाई। गर्भवती महिला के लिए यह उल्टा थकान और सिरदर्द का कारण बन सकता है। बेहतर है—संतुलित तरीका: हल्का स्नान, पूजन-स्थल पर जल का छिड़काव, 10–15 मिनट की सादगी भरी सफाई, फिर पौष्टिक भोजन और आराम।
ग्रामीण और शहरी सेटिंग में यह विषय अलग तरह से जीया जाता है। गांवों में सामुदायिक मान्यताएँ मजबूत होती हैं—इसलिए परिवार की भावनाओं का सम्मान करें, पर अपने स्वास्थ्य-नियम तय करके पहले ही बता दें। शहरों में “सूचना का शोर” ज्यादा होता है—यहां अनचाहे फॉरवर्ड्स से बचें और अपने डॉक्टर/काउंसलर/दाई से बनी योजना पर टिके रहें।
अंत में, सरल चेकलिस्ट—अगर कोई घबराहट, चक्कर, पेट में असामान्य दर्द, ब्लीडिंग, धुंधला दिखना, या शिशु की हरकत में अचानक बदलाव लगे, तो ग्रहण-व्रत-मंत्र सब एक तरफ रखिए और तुरंत चिकित्सा सहायता लीजिए। संस्कृति की खूबसूरती तभी है जब वह जीवन की सुरक्षा के साथ चले। ग्रहण आएंगे-जाएंगे—अपनी और बच्चे की सुरक्षा, पोषण और मन की शांति को सबसे ऊपर रखिए।